स्वतंत्रता
संग्राम
1857 की महान क्रांति में छत्तीसगढ़ का योगदान
भारत के इतिहास में 1857 की
क्रांति का एक विशेष स्थान है। इस क्रांति की वजह से लोगो में राष्ट्रीयता की
भावना का उदय हुआ। देश के अधिकांश भागो की तरह छत्तीसगढ़ भी इस क्रांति से प्रभावित
रहा। इस क्रांति के समय भारत के गवर्नर जनरल लार्ड कैनिन थे। और छत्तीसगढ़ के
डिप्टी कमिश्नर लैफ्टिनेंट स्मिथ थे।
छत्तीसगढ़ में निम्न विद्रोह हुए:
·
जन्म - 1795
मृत्यू - 1857
स्थान - सोनाखान( बलौदाबाजार जिला )
पिता - राम राय ( सोनाखान के जमींदार )
मृत्यू - 1857
स्थान - सोनाखान( बलौदाबाजार जिला )
पिता - राम राय ( सोनाखान के जमींदार )
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वीर नारायण सिंह सोनाखान के जमींदार
बिंझवार राजपूत थे। वर्ष 1856 ई. में सोनाखान में पड़े अकाल के दौरान लोगो की मदत करने
के लिए वीर नारायण सिंह ने माखन बनिया नामक व्यापारी के गोदाम का अनाज लोगो में
बांट दिया। व्यापारी की शिकायत पर नारायण सिंह को जेल में डाल दिया गया।
जेल से भाग कर नारायण सिंह 1857 के विद्रोह में शामिल हो गये। जेल से भागने के बाद वे सोनाखान पहुँचे और 500 सैनिको की एक सेना बनाई। इस समय डिप्टी कमिश्नर स्मिथ थे।
जेल से भाग कर नारायण सिंह 1857 के विद्रोह में शामिल हो गये। जेल से भागने के बाद वे सोनाखान पहुँचे और 500 सैनिको की एक सेना बनाई। इस समय डिप्टी कमिश्नर स्मिथ थे।
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स्मिथ ने नारायण सिंह के खानदानी दुश्मन महाराज साय से सहायता ली। 2 दिसंबर
1857 को कटंगी की फ़ौज स्मिथ से जा मिली। स्मिथ की सेना
ने पहाड़ को चारो तरफ से घेर लिया। अंत में नारायण सिंह को गिरफ्तार कर
लिए गये।
10 दिसंबर 1857 को वीर नारायण सिंह को "जय स्तम्भ चौक" रायपुर में फांसी दिया गया। इन्हे छत्तीसगढ़ का प्रथम शहीद कहा जाता है।
10 दिसंबर 1857 को वीर नारायण सिंह को "जय स्तम्भ चौक" रायपुर में फांसी दिया गया। इन्हे छत्तीसगढ़ का प्रथम शहीद कहा जाता है।
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जन्म - 23 जनवरी 1809
मृत्यु - 23 मई 1884
स्थान - रिवाड़ा ( ओड़िशा जिला - सम्बलपुर )
पिता - धर्म सिंह ( छत्रिय राजवंश )
मृत्यु - 23 मई 1884
स्थान - रिवाड़ा ( ओड़िशा जिला - सम्बलपुर )
पिता - धर्म सिंह ( छत्रिय राजवंश )
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1827 ई. में सम्बलपुर के चौहान राजा
महाराज साय की मृत्यु हो गई। राजा का कोई उत्तराधिकारी ( संतान ) नहीं था।चौहान राजवंश परंपरा केअनुसार संबलपुर
रियासत का सही उत्तराधिकारी होने के बावजूद अंग्रेजो के द्वारा सुरेन्द्र साय के
स्थान पर राजा की विधवा रानी मोहनकुमारी को
सिंघासन पर बिठा दिया गया। बाद में असंतोष होने पर नारायण सिंह ( बरपाली के
चौहान जमीदार परिवार के राजकुमार ) को राजा बना
दिया गया। इसके फलस्वरूप सुरेन्द्र साय और उनके छः भाइयो ने विद्रोह करदिया।
·
सुरेन्द्र साय ने 1857 के विद्रोह में
अंग्रेजो नाक में दम कर दिया। इनकी गतिविधि सम्बलपुर से बिलासपुर तथा कालीहांडी तक
फैली हुई थी।
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13 जनवरी 1862 में सुरेन्द्र साय को
उंनके घर से गिरफ्तार करलिया गया। इन्हे रायपुर जेल से नागपुर जेल और फिर असीरगढ़
किले में भेजा गया।
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28 फरवरी 1884 ई. को असीरगढ़ में
सुरेन्द्र साय की स्वाभाविक मौत हो गई। अंतिम समय में वे अंधे हो गए थे।
·
वीर सुरेन्द्र साय को " 1857ई. के
विद्रोह का अंतिम शहीद " कहा जाता है।
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जन्म - 1823*
मृत्यु - कोई जानकारी नहीं है।
वैसवाड़ा के राजपूत थे।
मृत्यु - कोई जानकारी नहीं है।
वैसवाड़ा के राजपूत थे।
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नारायण सिंह की सहादत के बाद अंचल में
अशांति फ़ैल गई थी। 18 जनवरी, हनुमान सिंह ने तीसरी
टुकड़ी के सार्जेन्ट मेजर सिडवेल की हत्या उसके घर में कर दी। हनुमान सिंह
तीसरे सेना के मेग्जीन लश्कर थे। सिडवेल की हत्या के
बाद हनुमान सिंह ने सिपाहियों को विद्रोह के लिए
उकसाया। लेफ्टिनेंट स्मिथ ने विद्रोह को नियंत्रित करने का प्रयास
किया। विद्रोही सिपाहियों की संख्या 27 थी।
·
गिरफ्तार सैनिको पर रायपुर के डिप्टी कमिश्नर के द्वारा मुक़दमा चलाया गया। 27 विद्रोही
सिपाहियों को 22 जनवरी 1858 ई. को पूरी
सेना के सामने फांसी दे दी गई।
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हनुमान सिंह को जिन्दा या मुर्दा पड़ने पर
500 रुपय के इनाम की घोषणा की गई, लेकिन
हनुमान सिंह की कोई सूचना नही मिली।
4) उदयपुर का विद्रोह:
4) उदयपुर का विद्रोह:
·
1858 में सरगुजा के राजा कल्याण सिंह ने सैनिक संगठन के साथ
विरोध किया था। कल्याण सिंह को 1859 में गिरफ्तार कर लिया
गया और कालापानी की सजा हुई।
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अंग्रेजो का साथ बिंदेश्वरी प्रसाद
सिंहदेव ने दिया था।
5) सोहागपुर का विद्रोह:
5) सोहागपुर का विद्रोह:
·
यह विद्रोह रायपुर में हुआ था। रायपुर के
तत्कालीन कमिश्नर के विरोध को दबाने में असफलता मिली।
प्रांतीय राजनीतिक सम्मेलन 1905
·
मध्यप्रान्त ( छत्तीसगढ़
संहित ) का प्रथम प्रांतीय सम्मेलन 22 अप्रैल
1905 में अमरावती में आयोजित किया गया। जिसकी अध्यक्षता
खापर्डे जी ने की। इस सम्मेलन में गंगाधर चिटणवीस स्वागत समिति के प्रधान थे।
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19 जुलाई 1905 को तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड कर्ज़न द्वारा बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा
की गई। यह विभाजन विभाजन 16 अक्टूबर 1905 से प्रभावी हुआ। बंगाल विभाजन के प्रति कांग्रेस के दृष्टिकोण का प्रचार
इस क्षेत्र में ताराचंद्र नामक युवक एवं उसके सांथियो द्वारा किया गया।
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देश में स्वदेशी व बहिष्कार आंदोलन की सुरुवात
हो गई। जिसका प्रभाव छत्तीसगढ़ पर भी पड़ा।
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बिलासपुर जिले में स्वतंत्रता आंदोलन का
नेतृत्व ताराचंद्र ने किया। जिन्हें प्रथम कार्यकर्ता होने का श्रेय है। इनके
अलावा छत्तीसगढ़ में वामनराव लाखे एवं माधवराव सप्रे ने स्वदेशी व बहिष्कार आंदोलन
का नेतृत्व किया।
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कांग्रेस के 1905 के
बनारस अधिवेशन में खापर्डे ने स्वदेशी प्रस्ताव रखा। इस अधिवेशन में पं. वामनराव
लाखे, पं. राविशंकर, पं. रामगोपाल
तिवारी, पं. बद्री प्रसाद पुजारी, पं.
रामराव चिचोलकर, माधवराव सप्रे एवं गजाधर साव स्वयं सेवक के
रूप में उपस्थित थे।
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इस विभाजन के कारण
सम्पूर्ण देश में उत्पन्न उच्च स्तरीय राजनीतिक अशांति के कारण 1911
में बंगाल के पूर्वी एवं पश्चिमी हिस्से पुनः एक हो गए।
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मध्यप्रान्त में द्वितीय
प्रांतीय राजनीतिक सम्मेलन 1906 में जबलपुर में
हुआ। जिसकी अध्यक्षता गंगाधर चिटणवीस ने की।
सूरत विभाजन 1907 –
·
1907 में हुए सूरत अधिवेशन में कांग्रेस दो दलों में विभाजित
हो गई। इस विभाजन का असर छत्तीसगढ़ में भी हुआ। सूरत अधिवेशन की अध्यक्षता
राजबिहारी घोष ने की थी।
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छत्तीसगढ़ पर प्रभाव : रायपुर टाउन हॉल में 29 मार्च
सन् 1907 में प्रांतीय राजनैतिक अधिवेशन हुआ जिसकी अध्यक्षता
आर.एन.मुधोलकर ने की तथा डा. हरीसिंह गौड़ स्वागत समिति के अध्यक्ष थे। दादा साहेब
खापर्डे ने सुझाव दिया कि अधिवेशन की कार्यवाही वन्देमातरम् गान से प्रांरभ की
जानी चाहिए किन्तु डा. गौड़ और मुधोलकर इस पर सहमत नहीं हुए। इस पर दादा साहेब और
डा.मुन्जे अधिवेशन स्थल छोड़कर चले गए।
·
नरम दल: हरि
सिंह गौर, सी.एम. ठक्कर, देवेंद्र
चौधरी, रायबहादुर, शिवराम मुंजे,
केलकर, देवेन्द्रनाथ चौधरी।
·
गरम दल: खापर्डे,
लक्ष्मणराव उदयगीरकर, रविशंकर शुक्ल, वामनराव लाखे, ठाकुर हनुमान सिंह।
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बाद में रविशंकर शुक्ल के प्रयासों से
दोनों दल एक हो गए।
छत्तीसगढ़ में होमरूल लीग आंदोलन
·
होम रूल लीग योजना को 14 दिसंबर 1915 में तिलक के द्वारा प्रस्तुत किया गया।
सन् 1916 में भारत में होमरूल लीग की सुरुवात हुई। अप्रैल 1916
में तिलक ने बॉम्बे प्रान्त में तथा एनी बेसेंट ने अड़यार ( मद्रास )
को केंद्र बनाया।
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छत्तीसगढ़ में होमरूल आंदोलन
तिलक के नेतृत्व में हुआ। छत्तीसगढ़ में डॉ. एन. चौधरी, राव साहब दानी, ठा. मनमोहन सिंह आदि नेता सक्रिय थे।
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प्रथम विश्वयुद्ध में
अंग्रेजो को समर्थन देने के संबंध में 1918 वामन राव
लाखे ने आपत्ति प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव का समर्थन पं. रविशंकर शुक्ल ने किया।
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सन्
1918 में होमरूल का एक सम्मेलन रायपुर में हुआ जिसमें पं. रावुशंकर
शुक्ल नगर शाखा के संगठक थे।
रोलेक्ट/रॉलेट एक्ट 1919
·
रॉलेट ऐक्ट 21 मार्च 1919 सर सिडनी रौलेट की अध्यक्षता
वाली समिति की शिफारिशों के आधार पर भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने
के उद्देश्य से बनाया गया था।
·
इस कानून की
अनुसार अंग्रेजी सरकार को यह अधिकार प्राप्त हो गया था कि वह किसी भी भारतीय पर
अदालत में बिना मुकदमा चलाए और बिना दंड दिए उसे जेल में बंद कर सकती थी।
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इस क़ानून के तहत मुकदमा दर्ज करने वाले का नाम जानने
का अधिकार भी समाप्त कर दिया गया था।
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इस कानून के विरोध में सष्ट्रव्यापि आंदोलन हुए। इसे काला
कानून न अपील, न वकील, न दलील का कानून
कहा जाता था। 6 अप्रैल 1919 को
राष्ट्रीय अपमान दिवस मनाया गया।
·
1919 के रॉलेक्ट एक्ट का विरोध छत्तीसगढ़ में भी हुआ। 1919 में 10 मार्च को मुंजे के द्वारा, 20 मार्च को दादा साहब खापर्डे, राघवेन्द्र राव एवं
रविशंकर शुक्ल के द्वारा विरोध किया गया। इसी बीच रतनपुर के पुरषोत्तम के द्वारा
खारंग बांध ( खूंटाघाट ) में कार्यरत मजदूरों को संबोधित कर काम को बंद करा दिया।
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छत्तीसगढ़ में विभिन्न स्थानों पर विरोध हुए। रायपुर
में पं. रविशंकर शुक्ल, माधव राव सप्रे, महंत लक्ष्मीनारायण। बिलासपुर में
ई. राघवेंद्रराव, शिवदुलारे मिश्र, बैरिस्टर छेदीलाल, यदुनंदन प्रसाद श्रीवास्तव। राजनांदगांव में ठा. प्यारेलाल।
राजिम में पं. सुन्दरलाल शर्मा, छोटेलाल श्रीवास्तव।
राजिम में पं. सुन्दरलाल शर्मा, छोटेलाल श्रीवास्तव।
जालियाँ वाला बाग हत्याकांड:
·
13 अप्रैल 1919 में हुए हत्याकांड का असर छत्तीसगढ़ में
भी हुआ। धमतरी में इस हत्याकांड की भर्त्सना के लिए
द्वितीय तहसील राजनीतिक परिषद का सम्मेलन हुआ जिसकी अध्यक्षता दादा भाई खापर्डे ने
की।
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मई 1920 में बिलासपुर जिला राजनैतिक सम्मेलन में ई.
राघवेंद्रराव द्वारा जलियावाला बाग हत्याकांड का विरोध किया गया तथा ओजस्वी भाषण
दिया गया, परिणामस्वरूप गंगाधर गोपाल दीक्षित ने "नायाब
तहसीलदार" का पद त्यागा।
छत्तीसगढ़ में असहयोग आंदोलन
1920
·
असहयोग आंदोलन की शुरुआत
महात्मा गांधी जी के द्वारा 1अगस्त 1920 से की गयी। लाला लाजपत राय की अध्यक्षता वाले कांग्रेस की कलकत्ता विशेष
अधिवेशन में प्रस्ताव लाया गया। दिसंबर 1920 के नागपुर
अधिवेशन में प्रस्ताव को समर्थन दिया गया ।
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छत्तीसगढ़ से भाग लेने
वाले नेता: पण्डित रविशंकर शुक्ल, पण्डित सुन्दरलाल
शर्मा, सी.एम. ठक्कर, नारायण राव
मेघवाले आदि।
·
छत्तीसगढ़ में प्रभाव: छ्त्तीसगढ़
में लोगो ने सरकारी उपाधियों, सरकारी अदालतों,
विद्यालय का बहिष्कार किया। बाजीराव कृदन्त ने धमतरी के प्रांतीय
विधानसभा का परित्याग किया। यादवराव देशमुख ने रायपुर जिला परिषद का तथा महंत
लक्ष्मीनारायण, सोमेश्वर शुक्ल ने शासकीय सेवा का परित्याग
किया।
·
इस आंदोलन के दौरान ही 1921
में डॉ.राजेन्द्र प्रसाद, सी. राजगोपालाचारी
तथा सुभद्रा कुमारी चौहान का छ्त्तीसगढ़ आगमन हुआ।
·
वकालत का
परित्याग:-बिलासपुर के बैरिस्टर छेदिलाल,
ई. राघवेंद्रराव, एन. आर खान खोजे, डी. के मेहता। रायपुर के पण्डित रामदयाल तिवारी, यादवराव
देशमुख।दुर्ग के घनश्याम सिंह गुप्त, रत्नाकर झा। राजनांदगांव
के ठाकुर प्यारेलाल सिंह, बलदेव प्रसाद मिश्र।
·
राय साहब की उपाधि का
परित्याग:-वामनराव लाखे, बैरिस्टर कल्याण सिंह,
मोरार जी थेरकर, सेठ गोपी किसन, बैरिस्टर नरेन्द्रनाथ।
·
विदेशी वस्तुओं का
बहिष्कार:-1 अप्रैल 1921 को
छ्त्तीसगढ़ में जगह-जगह विदेशी कपड़ो की होली जलाई गई।
·
माखनलाल चतुर्वेदी का
ओजस्वी भाषण:-बिलासपुर के शनिचरी बाजार में 12 मार्च 1921
के माखनलाल चतुर्वेदी ने अंग्रेजो के खिलाफ ओजस्वी भाषण दिया,
जिसके बाद उन्हें 12 मई 1922 को जबलपुर से गिरफ्तार कर बिलासपुर जेल में बंद कर दिया गया जहां इन्होंने
"पुष्प की अभिलाषा", "पर्वत की अभिलाषा"
तथा "पूरी नहीं सुनोगे तान" रचनाएँ की। राष्ट्रीय जागरण हेतु माखनलाल
चतुर्वेदी द्वारा कर्मवीर नामक पत्रिका का प्रकाशन
आरम्भ किया गया।
·
सत्याग्रह आश्रम:- 7
फरवरी 1921 को पण्डित सुन्दरलाल शर्मा ने
रायपुर में सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की। सुन्दरलाल शर्मा को गिरफ्तार कर लिया
गया। इन्होंने कारावास के दौरान "श्री कृष्ण जन्म स्थान" नामक पत्रिका
का संपादन किया।
·
उपवास:- राजनांदगांव के
छबिराम चौबे ने इस आंदोलन से प्रभावित हो कर 21 दिनों
की भूख हड़ताल की।
·
राष्ट्रीय विद्यालय की
स्थापना:- आंदोलन से प्रभावित हो कर छात्रों ने सरकारी संस्थाओं को त्याग दिया। इन
छात्रों के द्वारा 5 फरवरी 1921 को रायपुर में एक राष्ट्रीय विद्यालय की स्थापना की गई। माधवराव सप्रे के
द्वारा रायपुर में पहली महिला पाठशाला की स्थापना की गई।
जंगल
सत्याग्रह:
·
असहयोग आंदोलन के समय 21
जनवरी 1922 को सिहावा(धमतरी) में छत्तीसगढ़ का
प्रथम जंगल सत्याग्रह हुआ। जिसका नेतृत्व, बाबू छोटेलाल
श्रीवास्तव, पण्डित सुन्दरलाल शर्मा तथा नारायण मेघवाले ने
किया।
·
आंदोलन का समापन:-12
फ़रवरी 1922 में किसानों के एक समूह ने
संयुक्त प्रांत के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा पुरवा में एक पुलिस स्टेशन में आग
लगा दी। इस अग्निकांड में कई पुलिस वालों की जान चली गई। हिंसा की इस कार्यवाही की
वजह से गाँधी जी बारदोली प्रस्ताव द्वारा आंदोलन तत्काल वापस ले लिया।
गांधी जी के इस निर्णय से आहत हो कर स्वराज दल का गठन किया गया।
गांधी जी के इस निर्णय से आहत हो कर स्वराज दल का गठन किया गया।
छत्तीसगढ़ में व्यक्तिगत
सत्याग्रह :
·
बम्बई अधिवेशन 1940
में व्यक्तिगत सत्याग्रह को स्वीकृति मिलने के बाद अक्टूबर 1940
में महात्मा गांधी जी के द्वारा व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरुआत हुई।
विनोबा भावे भारत के प्रथम सत्याग्रही बने।
·
छत्तीसगढ़ में 27
नवंबर 1940 ई. को पण्डित रविशंकर शुक्ल के
द्वारा रायपुर में व्यक्तिगत सत्याग्रह की शुरुआत की गई। छत्तीसगढ़ में करीब 500 सत्याग्रही
थे।गिरफ्तार सभी सत्याग्रहियों को 3 दिसंबर 1941 को रिहा कर दिया गया।
·
रायपुर: पं.
रविशंकर शुक्ल जी छत्तीसगढ़ के प्रथम सत्याग्रही थे। शुक्ल जी की गिरफ्तार कर एक
वर्ष की सजा सुनाई गई। उनके गिरफ्तारी के बाद करीब 74 लोगो ने सत्याग्रह किया। इस समय काल में ही 1940 ई.
में रायपुर कांग्रेस भवन का निर्माण किया गया जिसका उद्दघाटन सरदार वल्लभ भाई पटेल
के द्वारा किया गया।
·
बिलासपुर:
बिलासपुर के प्रमुख सत्याग्रही थे, यदुनंदन
प्रसाद श्रीवास्तव, ज्वाला प्रसाद मिश्र, बैरिस्टर छेदिलाल, किशनचंद कायस्थ, आर. पी. रॉय तथा रामगोपाल तिवारी।
·
दुर्ग:
दुर्ग के प्रमुख सत्याग्रही, रत्नाकर झा, घनश्याम सिंह गुप्त, रामकुमार सिंगरौल, वाई. व्ही. तामस्कर, मोहनलाल बाकलीवाल।
छत्तीसगढ़ में भारत छोड़ो आंदोलन 1942
·
“अखिल भारतीय कांग्रेस” द्वारा 8
अगस्त, 1942 ई. को बम्बई (मुंबई) के ऐतिहासिक
"ग्वालिया टैंक" में हुए बैठक में गांधी जी के ऐतिहासिक “भारत छोड़ो प्रस्ताव” को कांग्रेस कार्यसमिति ने कुछ
संशोधनों के बाद 8 अगस्त, 1942 ई. को
स्वीकार किया। और 9 अगस्त से भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत
सम्पूर्ण भारत में हुई।
·
बम्बई के बैठक में छत्तीसगढ़ का
प्रतिनिधित्व रविशंकर शुक्ल, लक्ष्मीनारायण दास, द्वारिका प्रसाद मिश्र, कुंजबिहारी अग्निहोत्री,
वाय. वी. तामस्कर के द्वारा किया गया। 9 अगस्त
सन् 1942 को पूरे देश मे आन्दोलन हुआ और शाम को शहर में एक
जुलुश निकाला गया, जिसका नेतृत्व रणवीर सिंह शास्त्री ने
कियाआ, जिसका प्रभाव छत्तीसगढ़ में भी पड़ा। बम्बई अधिवेशन से वापस लौटते वक्त मलकापुर में सभी नेताओं को गिरफ्तार कर
लिया गया।
·
छत्तीसगढ़ में संचालन: "भारत छोड़ो आंदोलन" आंदोलन का संचालन छत्तीसगढ़ के
विभिन्न स्थानों पर विभिन्न नेताओं द्वारा किया गया। रायपुर
- भगवती चरण शुक्ल, जयनारायण पाण्डेय, रणवीर
सिंह शास्त्री, कमलनारायण शर्मा, त्रेतानाथ
त्रिपाठी, रामकृष्ण ठाकुर। बिलासपुर
- चिन्तामणी ओत्तालवार, राजकिशोर शर्मा, कालीचरण, बैरिस्टर छेदिलाल, यदुनंदन
प्रसाद श्रीवास्तव। दुर्ग - रघुनंदन प्रसाद सिंगरौल,
रत्नाकर झा, गणेश प्रसाद सिंगरौल, नरसिंह प्रसाद अग्रवाल।
·
प्रमुख घटनाएँ: रायपुर: 9 अगस्त 1942 को रायपुर को सभी स्कूल,
कॉलेज तथा बाजार बंद था। रविशंकर शुक्ल, महंत लक्ष्मीनारायण,
छेदिलाल तथा डॉ. खूबचंद बघेल गिरफ्तार हो चुके थे। रायपुर में
राष्ट्रीय विद्यालय के निकट करीब बिस हजार लोगो ने जुलूस निकाला। जयनारायण पाण्डेय,
कमलनारायण शुक्ल ने आंदोलन का नेतृत्व किया। इस समय रायपुर के डिप्टी कमिश्नर आर.के. पाटिल थे।
·
10 अगस्त को शाम में शाहर में एक जुलुस निकाला गया, जिसका नेतृत्व रणवीर सिंह शास्त्री ने किया। गांधी चौक पहुँच कर यह जुलूस
सभा मे बदल गया। इस सभा का नेतृत्व त्रेतानाथ तिवारी ने किया। रणवीर सिंह शास्त्री को गांधी चौक से गिरफ्तार कर लिया गया।
·
दुर्ग -28 अगस्त 1942
को रघुनंदन सिंगरौल ने दुर्ग जिला कचहरी में आग लगा दी। पुलिस ने
रघुनंदन सिंगरौल को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया परंतु सबूतो के अभाव में
उन्हें छोड़ दिया गया। 5 सितंबर 1942 को
रघुनंदन सिंगरौल ने जसवंत सिंह के साथ मिलकर नगरपालिका भवन में आग लगा दी।
रायपुर षड्यंत्र केस –
·
रायपुर में क्रांतिकारियों के सहयोग हेतु
परसराम सोनी और बी. बी. सूर के नेतृत्व में विस्फोटक सामग्रियों का निर्माण कराया
गया। इस षड्यंत्र मे अन्य सहयोगी प्रेमचंद्र वासनिक, डॉ. सुरमंगल मिस्त्री,
सुधीर मुखर्जी, दशरथ चौबे, रणवीर सिंह शास्त्री, गिरिवर दामोदर, कांतिकुमार भारती।
·
शिवनंदन नामक मुखबिर के द्वारा पुलिस को
सूचना देने की वजह से इस षड्यंत्र मे शामिल क्रांतिकारियों को 15 अगस्त1942
को गिरफ्तार कर लिया गया। और 7 वर्ष की सजा
सुनाई गई। पं. रविशंकर शुक्ल के प्रयासों से इन्हें रिहा कियागया।
रायपुर डायनामाइट कांड –
·
रायपुर जेल से राजनेताओ को बाहर निकलने
के लिए बिलखनारायण अग्रवाल के नेतृत्व में जेल के दीवार को डायनामाइट से उड़ाने की
योजना बनाई गई।
·
इस योजना की जानकारी पुलिस तक अविनाश
संग्राम के द्वारा पहुचाई गई। जिस वजह से यह योजना असफल रही। पुलिस ने बिलखनारायण
के साथ उनके सहयोगी ईश्वरीलाल, जयनारायण पाण्डेय तथा नागरदास
बावरिया को गिरफ्तार करलिया गया।
स्वतंत्रता हेतु अन्य
प्रमुख गतिविधियाँ
कंडेल नहर सत्याग्रह 1920
·
20 दिसम्बर 1920 में
महात्मा गांधी के रायपुर एवं 21 दिसम्बर
1920 को धमतरी आगमन से इस क्षेत्र में ब्रिटिश शासन के गाँधीवादी विरोध के तरीके
का प्रथम प्रयोग किया गया |
·
शासन द्वारा लगाये गये
नहर कर के विरोध में सत्याग्रह द्वारा छोटेलाल श्रीवास्तव , पं. सुन्दरलाल शर्मा ,
नारायणराव मेघावाले के मार्गदर्शन में सफल विरोध किया गया |
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गांधीजी के साथ मोहम्मद शौकत अली भी आये थे |
बी.एन. सी. मिल मजदूर
आंदोलन राजनांदगांव -
·
सन् 1919
में ठाकुर प्यारेलाल ने राजनांदगांव स्थित BNC मिल ( बंगाल नागपुर कॉटन मिल ) के मजदूरों को एक किया। और 1920 में प्रदेश का प्रथम लंबा सफल आंदोलन हुआ। 1920 से 1937
के बीच प्रदेश में तीन मजदूर आंदोलन हुए।
·
प्रथम मजदूर आंदोलन 1920: नेतृत्व - ठाकुर प्यारे लाल, शंकर खरे, शिवलाल मास्टर। 1920 में ठाकुर प्यारेलाल ने प्रदेश की पहली लंबी एवं
सफल आंदोलन का नेतृत्व किया। इस आन्दोलन में उनका साथ शंकर खरे एवं शिवलाल मास्टर
ने दिया। यह आंदोलन 37 दिनों तक चला। श्रमिक नेता वी.वी.
गिरी का आगमन राजनांदगांव में इस आंदोलन के दौरान 1920 में
हुआ। इस आंदोलन की मांग थी कि मजदूरों की कार्य अवधि 8 घंटे
निर्धारित किया जाए, कार्य करने की स्थिती में सुधार एवं
वेतन वृद्धि।
·
द्वितीय मजदूर आंदोलन 1924: प्रथम मजदूर आंदोलन की सफलता से मजदूरों के हौसले बुलंद हुए। और 1924
में ठाकुर प्यारेलाल जी के नेतृत्व में दूसरा आंदोलन हुआ।कारण- रात्रि
भोज के वक़्त एक सिपाही जूते पहन कर आया और बर्तनों को लात दिया । जिससे मजदूर भड़क
गए और सिपाही के साथ आये एक व्यक्ति को थप्पड़मार दिया । जिस पर पुलिस ने कार्यवाही
करते हुए करीब 13 मजदूर नेताओ को गिरफ्तार कर लाया गया,
1 की मौत तथा 12 घायल हुए।
इस आंदोलन की वजह से
अंग्रेजो ने श्रमिकों की मांगो पर विचार करने की लिए जैक्सन आयोग का गठन किया गया।
·
तृतीय मजदूर आंदोलन 1937: 16 नवंबर 1936 को मजदूरों के
नेता ठाकुर प्यारेलाल पर राजनांदगांव रियासत के दीवान ने रियासत में प्रवेश करने
पर प्रतिबंध लगा दिया। मिल मालिकों ने मजदूरों की एकता भंग करने की कोशिश की तथा
मजदूरी 10% कम कर दी। प्यारेलाल रियासत में नहीं आ सकते थे।
इसलिए उन्होंने पर्चे बांटे। मजदूरों तक अपनी बाते पर्चो के माध्यम से पहुंचाया और
हड़ताल जारी रखा। अंततः मिल मालिकों को झुकना पड़ा और आंदोलन सफल हुआ।
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तृतीय मजदूर आंदोलन के
दौरान मजदूर नेता रुइकर ने 1 अगस्त 1938 को राजनांदगांव स्टेट कांग्रेस की स्थापना की।
राष्ट्रीय झण्डा सत्याग्रह
- 1923
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सन् 1923
में हुआ झण्डा सत्याग्रह, भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान का एक शान्तिपूर्ण नागरिक अवज्ञा
आन्दोलन था जिसमें लोग राष्ट्रीय झण्डा फहराने के अपने अधिकार के तहत जगह-जगह
झण्डे फहरा रहे थे। इस आन्दोलन का मुख्य केंद्र नागपुर था। परन्तु इसका प्रभाव
सम्पूर्ण देश के साथ तत्कालीन मध्य प्रान्त बरार में भी हुआ।
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सत्याग्रह की शुरुआत :-कांग्रेस
ने चर्खा युक्त तिरंगे को सम्पूर्ण देश में प्रतीक के रूप में महत्व देना आरम्भ
किया। जबलपुर के टाउन हॉल में मार्च 1923 को
तिरंगा फहराया गया। परंतु अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर ने झण्डा उतरवा कर कुचलवा दिया।
जिसका विरोध कांग्रेसियों ने किया। और इस घटना से उत्तेजित हो कर झंडा सत्याग्रह
की शुरुआत कर दी गई।
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11 मार्च 1923 को मध्य प्रान्त के जबलपुर में तथा 31 मार्च 1923
को झण्डा सत्याग्रह के द्वितीय चरण में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में
पंडित सुन्दरलाल शर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान तथा नाथूराम
मोदी आदि नेताओ ने रैली निकाली। इन्हें गिरप्तार कर लिया गया।
सिहावा जंगल
सत्याग्रह(1922)
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सरकार द्वारा बनाये गए
नए वन कानून तथा बेगारी व अल्प मजदूरी में कार्य करने के लिए विवश किये जाने के
विरोध में सुरु हुआ।
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स्थान: सिहावा(धमतरी)
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प्रारम्भ: 21 जनवरी 1922
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नेतृत्वकर्ता: बाबू
छीटेलाल श्रीवास्तव, पंडित सुंदरलाल शर्मा,
नारायण राव मेघा वाले
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स्थानीय सहयोगी: शोभाराम
साहू,
श्यामलाल सोम, पंचम सिंह, विशम्भर पटेल राज्य में सविनय अवज्ञा के दौरान 1930 जंगल सत्याग्रह हुए।
मोहबना पोंड़ी जंगल सत्याग्रह:-
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प्रारम्भ: जून 1930
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स्थान: मोहबना पोंड़ी
(दुर्ग)
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नेतृत्व: नरसिंह अग्रवाल
गट्टा सिल्ली जंगल
सत्याग्रह:-
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प्रारम्भ: जुलाई 1930
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स्थान: गट्टा सिल्ली
(धमतरी)
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नेतृत्व: छोटेलाल
श्रीवास्तव, नारायण राव, नत्थुजी
जगताप
पोंड़ीग्राम जंगल
सत्याग्रह:-
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प्रारम्भ: अगस्त 1930
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स्थान: पोंड़ीग्राम सीपत
(बिलासपुर)
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नेतृत्व: रामाधार दुबे
रुद्री नवागांव जंगल
सत्याग्रह:-
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प्रारम्भ: अगस्त 1930
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स्थान: रुद्री नवागांव
(धमतरी)
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नेतृत्व: छोटेलाल
श्रीवास्तव, नत्थुजी जगताप, नारायण
राव
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यह सबसे भीषण सत्याग्रह
था। पुलिस द्वारा मिंटू कुम्हार नामक व्यक्ति की मृत्यु हो गई।
तमोरा जंगल सत्याग्रह:-
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प्रारम्भ: सितंबर 1930
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स्थान: तमोरा (महासमुंद)
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नेतृत्व: बालिका दयावती,
शंकरलाल, यतीयतानलाल
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इस आंदोलन के दौरान
बालिका दयावती नामक महिला ने अंग्रेज अनुविभागीय अधिकारी को तमाचा मार दिया।
लभरा जंगल सत्याग्रह:-
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प्रारम्भ: सितंबर 1930
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स्थान: लभरा (महासमुंद)
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नेतृत्व: अलिमर्दनगिरी
बाँधाखार जंगल सत्याग्रह:-
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प्रारम्भ: 1930
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स्थान: बाँधाखार(कोरबा)
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नेतृत्व: मनोहरलाल
शुक्ला
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सविनय अवज्ञा आंदोलन के
बाद व छत्तीसगढ़ में जंगल सत्याग्रह हुए।
छुई खदान जंगल सत्या ग्रह:-
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प्रारम्भ: 1938
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स्थान: छुई खदान
(राजनांदगांव)
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नेतृत्व: समारू बरई
बदराटोला जंगल सत्याग्रह:-
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प्रारम्भ: 1939
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स्थान: बदराटोला
(राजनांदगांव)
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नेतृत्व: रामाधीन गोंड़
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इस आंदोलन में पुलिस की
बर्बता से रामाधीन की मृत्यु होगई।
छत्तीसगढ़ के प्रमुख आदिवासी
विद्रोह
हल्बा विद्रोह- 1774 ई. - 1777 ई.
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नेतृत्वकर्ता - अजमेर
सिंह
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शासक- दरियादेव
·
उद़देश्य –
उत्तराधिकार हेतु
·
यह छत्तीसगढ़ का प्रथम आदिवासी विद्रोह माना
जाता है। यह विद्रोह डोंगर क्षेत्र में 1774 ई. से 1777
ई. तक चला। काकतीय शासक इस
विद्रोह को रोकने में असमर्थ रहे और वे मराठो के अधीन हो गए।
भोपालपट्टनम संघर्ष 1975 ई.
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नेतृत्व- आदिवासियों
द्वारा
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उद्देश्य - अंग्रेज अधिकारी जे. टी. ब्लण्ट को जगदलपुर प्रवेश के विद्रोह
में
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भोपालपट्टनम संघर्ष ( 1975
ई. ) आदिवासियों के द्वारा अंग्रेज अधिकारी जे. टी. ब्लण्ट को जगदलपुर प्रवेश के
विद्रोह में किया गया था। विरोध की वजह से अधिकारियों को वापस लौटना पड़ा। यह
संघर्ष अल्पकालीन था।
परलकोट विद्रोह 1825 ई. -
•
नेतृत्व- गेंदसिंह
•
शासक- महिपाल देव
•
उद्देश्य - अबुझमाड़ीयों की
शोषण मुक्ति
•
दमनकर्ता - कैप्टन पेबे
•
विशेष - प्रथम शहीद -
गेंद सिंह , प्रतीक धावडा पेड़ की टहनी
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परलकोट विद्रोह ( 1825
ई. ) एक आदिवासी/जनजातीय विद्रोह था। यह विद्रोह जमींदार गेंद सिंह के नेतृत्व में
अबूझमाड़ियों के द्वारा किया गया विद्रोह था। जिसे अंग्रेज एवं मराठो के शोषण के
विरोध में प्रारम्भ किया गया था। नेता गेंद सिंह को गिरफ्तार कर 20 जनवरी 1825 को
उन्हें महल के सामने फाँसी गई।
तारापुर
विद्रोह 1842 ई.
• नेतृत्व- दलगंजन सिंह
• शासक- भुपालदेव
• उद्देश्य - कर बढाने के विरोध में
• शासक- भुपालदेव
• उद्देश्य - कर बढाने के विरोध में
·
तारापुर आदिवासी/जनजातीय विद्रोह 1842 से 1854 ई. तक चला। यह विद्रोह कर वृद्धि के विरोध में
किया गया था। इसका नेतृत्व तारापुर
परगने के गवर्नर दलगंजन सिंह ने किया था। आदिवासियो की विद्रोह की भावना को
शांत करने के लिए दीवान को हटा दिया गया और सभी कर भी हटा लिये गये।
मेरिया/माड़िया विद्रोह 1842
ई.
•
नेतृत्व- हिडमा मांझी
•
शासक- भुपालदेव
•
उद्देश्य - नरबलि प्रथा
के विरूद्व
•
दमनकर्ता - कैम्पबेल
·
मेरिया आदिवासी विद्रोह 1842
से 1863 तक चला। यह विद्रोह आंग्ल-मराठा शासन के खिलाफ मेरिया/माड़िया आदिवासियो की परम्पराओ पर होने वाले हस्तक्षेप
के के विरोध में उत्पन्न हुआ था। इसका
नेतृत्व हिडमा मांझी ने किया था। ब्रिटिश शासन ने दंतेवाड़ा मंदिर में होने वाले नरबलि
को रोकने के लिए मंदिर में सेना तैनात करदी।
इस घटना से नाराज होकर आदिवासियो ने विरोध किया। मंदिर के तत्कालीन पुजारी
श्याम सुन्दर ने भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया। हिडमा मांझी के नेतृत्व
में मेरिया आदिवासियो ने सेना हटाने की मांग की लेकिन उनकी बातो को अनसुना कर
ब्रिटिश शासन ने बल प्रयोग किया। इस कारण आदिवासियो ने भी छिप कर हमले करना शुरू
कर दिया। परिणामस्वरूप ब्रिटिश शासन ने
अतरिक्त सेना बुलाई और विद्रोह को कुचल दिया।
कितना सुंदर लिखा है अपने अगर आप सब भी ऐसे ही छत्तीसगढ़ लोक नृत्य के बारे में लेख पढ़ना चाहते है।
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